फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब की यात्रा के प्रमुख पड़ाव घांघरिया में घोड़े-खच्चरों की लीद के कारण तेजी से पेड़ पौधे सूख रहे हैं। वहीं घोड़े-खच्चर अधिक होने के कारण अब घोड़ा-खच्चर संचालकों ने कई अन्य जगहों पर भी घोड़ा पड़ाव बनाना शुरू कर दिया है, जो घाटी की जैव विविधता को भी समाप्त कर रहा है।
हेमकुंड साहिब की यात्रा और फूलों की घाटी के सैर-सपाटे के दौरान घांघरिया पड़ाव पड़ता है। घांघरिया में इमारती लकड़ी रागा और देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ हैं और यहां दूर-दूर तक फैला घना जंगल है। घांघरिया के शुरुआत में ही घोड़ा पड़ाव स्थित है। यहां यात्राकाल में चार से पांच हजार घोड़े-खच्चरों को रुकवाया जाता है लेकिन यहां घोडे़-खच्चरों की लीद और मूत्र की निकासी न होने से दलदल जैसी स्थिति बनी रहती है। इससे घोड़ा-पड़ाव के आसपास खड़े रागा और देवदार के पेड़ सूख रहे हैं। वहीं स्थानीय भ्यूंडार के पूर्व जिला पंचायत सदस्य भवान सिंह चौहान का कहना है कि पूर्व में घोड़ा पड़ाव पर लीद और मूत्र से दो से तीन फीट तक दलदल बना रहता था। बाद में ईडीसी (पर्यावरण विकास समिति) की ओर से यहां मिट्टी का भरान किया गया, लेकिन अब फिर से दलदल की स्थिति पैदा हो गई है। घांघरिया की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए कांजिला के समीप ही घोड़ा-खच्चर पड़ाव बनाया जाना चाहिए।