रुद्रप्रयाग– पूरा देश जहाँ होली के दिन रंगो में रंग कर मिलन और सौहार्द के साथ झूमता है तो वहीं रुद्रप्रयाग के 3 ऐसे गाँव भी है,जहाँ सैकड़ो वर्षो से होली के त्यौहार को नहीं मनाया जाता है।स्थानीय लोगो की माने तो इन गाँवों के कुल देवता भेलघो(भूमियाल)एंव माँ गौरा को रंग पसंद नहीं है,जब भी यहाँ के लोगो ने होली खेलने का प्रयास किया तब-तब यहाँ बड़ी अनहोनी घटनाये घटी है,इसी परम्परा को इन तीनो गाँवों के लोग परम्परा को आज भी निभाते आ रहे है।
आपको बताते चले कि जनपद रुद्रप्रयाग के विकास खण्ड अगस्त्यमुनि के तीन गॉंव-कुरझण,क्वीली व जौंदला में तीन सौ साल से होली नहीं खेली जाती है,पौराणिक मान्यताओ के आधार पर जब-जब यहाँ होली खेलने के प्रयास किये गये उसी समय यहां के लोगो को भयंकर महामारी का शिकार होना पड़ा।कुरझण गॉंव के वरिष्ठ नागरिक शम्भू प्रसाद पुरोहित बताते है कि हमने अपने पूर्वजो से सूना था कि लगभग तीन सौ साल गुजर चुके है जब यहाँ होली खेली गई,होली खेलते ही हमारे तीनो गाँवों में महामारी हैजा जैसी बीमारी फैल गईं,ओर कई लोगो की जाने तक चली गईं थी,तब से आज तक यहाँ होली के त्यौहार को नहीं मनाया जाता है.हालांकि बगल के गॉंव क्वीली में कुछ सालों पहले युवाओं ने होली खेलने का फिर प्रयास किया था तो गॉंव के 40-45 लोग अचानक बीमार हो गये जिन्हे देहरादून तक ले जाना पड़ा था,यही कारण है कि क्षेत्र के तीनो गाँवों में आज भी होली नहीं मनाई जाती है.
वहीं ग्राम देवता भेलघो यानि भूमियाल देव के पुजारी हरि शरण पाण्डे,का कहना है कि हमारे क्षेत्र रक्षक देवता भूमियाल को रंगो की होली पसंद नहीं है,इसका प्रमाण यही है कि जब भी होली खेलने की कोशिशे हुई तब तब बड़ी महामारी एंव जनहानि हुई है,यही कारण है हमारे तीनो गाँवों-क्वीली,कुरझण,जौंदला में आज भी होली नहीं मनाते है.हालांकि गॉंव से बाहर शहरों में बसे लोग होली मनाते है मगर गॉंव में होली नहीं मनाते है.
ग्राम प्रधान प्रबोध पाण्डे,सामजिक कार्यकर्ता रितेश पाण्डे,सहित गाँवों की बुजुर्ग महिलाओ का कहना है कि सैकड़ो वर्षो से चली आ रही इस रीति का आज भी पालन किया जा रहा है,हमें अब नहीं लगता है कि होली का त्यौहार है,ग्रामीण अपने-अपने रोज मर्रा के कार्यों में व्यस्त दिखते नजर आ रहे है।