उत्तरकाशी-उत्तराखंड की हसीन वादियां आखिर किसे पसंद नहीं है। उत्तराखंड में ऐसे कई इलाके हैं, जो बेहद खूबसूरत हैं। ये सभी जगह वक्त के साथ पर्यटकों के ड्रीम डेस्टिनेशन बनते जा रहे हैं। इनमें से एक है नेलांग घाटी। यहां पर्यटक तो पहुंचे है लेकिन कुछ पाबंदियां भी थी लेकिन अब पर्यटकों के लिए खुशखबरी है कि भारत-चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित नेलांग घाटी में पहले पर्यटक इनरलाइन बाध्यताओं के चलते रात्रि विश्राम नहीं कर सकते थे लेकिन अब पर्यटक यहां पर रात्रि विश्राम भी कर पाएंगे। इसके लिए गंगोत्री नेशनल पार्क ने तैयारी शुरू कर दी है। भैरो घाटी और नेलांग के बीच गंगोत्री नेशनल पार्क की ओर से दो स्थानों पर कारछा और चोरगाड़ में टेंट कॉलोनी का निर्माण किया जाएगा जिसके लिए पार्क प्रशासन की ओर से 20 लाख का प्रारंभिक इस्टीमेट तैयार किया गया है।
इनरलाइन बाध्यताओं के कारण नहीं थी इजाजत
भारत-चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित नेलांग घाटी में इनरलाइन बाध्यताओं के कारण वहां पर आवाजाही बंद थी। जिसे पर्यटन के दृष्टिकोण से खोला गया लेकिन नेलांग तक पर्यटकों को जिला प्रशासन और गंगोत्री नेशनल पार्क की अनुमति से जाने दिया जाता है। नेलांग से आगे सुरक्षा के दृष्टिकोण से पर्यटकों को नहीं जाने दिया जाता है। नेलांग तक भी पर्यटकों को मात्र दिन में ही जाने की अनुमति है। रात में यहां पर पर्यटक नहीं जा सकते थे लेकिन अब गंगोत्री नेशनल पार्क ने भैरो घाटी से नेलांग तक केंद्र सरकार की वाइब्रेंट योजना के तहत पर्यटकों के रात में रुकने की व्यवस्था की योजना तैयार कर दी है। भैरो घाटी से करीब 10 किमी आगे कारछा और चोरगाड़ के बुग्यालों में गंगोत्री नेशनल पार्क ने टेंट कॉलोनी निर्माण की योजना तैयार कर दी है।
पर्यटकों के ठहरने के लिए बनाई जाएंगी टेंट कॉलोनी
इन दोनों स्थानों पर करीब 20 लाख की लागत से टेंट कॉलोनी बनाई जाएगी। इन कॉलोनी में रुकने के लिए पर्यटकों को एसडीएम सहित गंगोत्री नेशनल पार्क की शर्तों के अनुरूप रहने की अनुमति दी जाएगी। पार्क के उपनिदेशक आरएन पांडेय ने बताया कि कारछा और चोरगाड़ में टेंट कॉलोनी बनाने के लिए योजना तैयार कर दी गई है। सुरक्षा के साथ ही वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ाने के लिए पार्क प्रशासन ने यह निर्णय लिया है। साथ ही टेंट का संचालन पार्क प्रशासन स्वयं करेगा जिससे पार्क प्रशासन की आय का एक अन्य स्रोत बढ़ेगा।
भारत चीन युद्ध के बाद आम जनता के लिए था बंद
बता दें कि 1965 में हुए भारत चीन युद्ध के बाद इसे आम जनता के लिए बंद कर सेना और आईटीबीपी के हवाले कर दिया गया। 2015 में पर्यटन के लिए इसे फिर से खोला गया और तब से यह पर्यटकों की पसंद बन गई है। चीन से सटा होने के कारण यह चट्टानी इलाका बिल्कुल लद्दाख, स्पीति और तिब्बत जैसा दिखता है, जहां मौसम तो एक जैसा ही साथ ही ऊंची ऊंची चोटियां भी हैं। इन्हीं खूबियों की वजह से यह घाटी पर्यटकों का ड्रीम डेस्टिनेशन है।