ब्यूरो:उत्तराखंड में अब लखपत सिंह, जॉय हुकिल और आशीष दास गुप्ता जैसे जाने-माने शिकारी आदमखोर बाघों और गुलदारों से मोर्चा लेते नजर नहीं आएंगे। वन विभाग ने वर्ष 2006 से चली आ रही व्यवस्था को समाप्त करते हुए शिकारियों के पैनल को रद्द कर दिया है। ऐसी स्थिति बनने पर वन विभाग अब उत्तराखंड पुलिस की मदद से खुद मोर्चे पर डटेगा।प्रदेश में मानव वन्यजीव संघर्ष के बीच कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है, जब संबंधित वन्यजीवों (बाघ, गुलदार, हाथी इत्यादि) को आदमखोर घोषित करते हुए उन्हें मारने के आदेश करने पड़ते हैं। इस काम के लिए अभी तक वन विभाग पैनल में शामिल लाइसेंसी शिकारियों की मदद लेता रहा।
वर्ष 2006 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में संशोधन करते हुए धारा 11 की उपधारा (1) के खंड (क) में शिकारियों का पैनल गठित करने की व्यवस्था की गई थी। इसके तहत पैनल में शामिल शिकारी आदमखोर वन्यजीवों का सफाया करने के साथ ही प्रशिक्षु वन अधिकारियों और कर्मचारियों को समय-समय पर ट्रेनिंग भी देते थे।
कर्मचारियों को ट्रेंड करेगा
बीते दिनों राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर से इस संबंध में गाइडलाइन जारी करते हुए शिकारियों के पैनल ही नहीं इस व्यवस्था को ही खत्म करने के निर्देश जारी किए गए थे। इस पर वन विभाग ने कार्रवाई करते हुए फैसला भी ले लिया है। अब वन महकमा इस काम के लिए पुलिस की मदद से अपने कर्मचारियों को ट्रेंड करेगा और जरूरत पड़ने पर पुलिस के शूटरों की मदद लेगा। प्रमुख वन संरक्षक अनूप मलिक ने इसकी पुष्टि की है।
ये शिकारी थे प्रमुख रूप से पैनल में
उत्तराखंड वन विभाग में शिकारियों के पैनल में लखपत सिंह (चमोली), आशीष दास गुप्ता (सोलन, हिमाचल), साद बिन आसिफ (बिजनौर, यूपी), अली अदनान (बिजनौर, यूपी), डॉ. प्रशांत सिंह (देहरादून), जॉय हुकिल (पौड़ी गढ़वाल), गंभीर सिंह भंडारी (टिहरी, गढ़वाल), अशोक मित्तल (रोहिणी, दिल्ली), बलवीर सिंह पंवार (वन दरोगा, नरेंद्रनगर वन प्रभाग, मुनि की रेती), जहीरुद्दीन बख्शी (देहरादून), हरीश सिंह धामी (नैनीताल), विपिन चंद्रा (भीमताल), शेख अजहर खान (पौड़ी गढ़वाल), कै. रक्षित शर्मा (देहरादून), सैय्यद अली बिन हादी (मेरठ, यूपी), राजीव सोलाेमन (मुरादाबाद, यूपी), उदयन सिंह (चंदौसी, यूपी), मंसूर मजहर (मुरादाबाद, यूपी) आदि शामिल थे।वहीं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक वन विभाग – डॉ. समीर सिन्हा ने बताया कि शिकारियों का पैनल एनटीसीए की नई गाइडलाइन के अनुसार रद्द कर दिया गया है। अब उनके लिए विभाग अपने कर्मचारियों को तैयार करेगा। उत्तराखंड पुलिस की मदद लेने के लिए डीजीपी से पहले दौर की बैठक भी हो चुकी है।