रुद्रप्रयाग-केदारनाथ यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की लीद सबसे बड़ी समस्या का कारण बनता है। लेकिन अब यही रोजगार का बड़ा जरिया बनने जा रहा है। लीद से ईंट, गमला, कोयले सहित अन्य उत्पादन का कार्य शुरू होने जा रहा है।
केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ाव और पैदल मार्ग पर घोड़ा-खच्चर की लीद से पैदल मार्ग पर गंदगी के साथ यात्रियों के फिसलने का खतरा रहता ही है। मंदाकिनी नदी का जल भी प्रदूषित होता है। लेकिन, इस केदारनाथ पुनर्निर्माण में बीते नौ से अहम भूमिका निभाने वाले सूबेदार मनोज सेमवाल लीद को एकत्र कर उससे ईंट, कोयला व गमले बनाने की तैयारी में हैं। इससे आने वाले समय में रोजगार के अवसर विकसित होंगे। अब तक बीते 28 दिन में 1,200 लीद एकत्र की जा चुकी है। इसके लिए उन्होंने वेस्ट मैनेजमेंट टीम गठित की है, जिससे 40 श्रमिक जुड़े हुए हैं। सेमवाल यह कार्य कृषि विज्ञान केंद्र, जाखधार (रुद्रप्रयाग) के निर्देशन में कर रहे हैं।नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से जुड़े रहे सूबेदार मनोज सेमवाल का कहना है कि यात्राकाल में केदारनाथ पैदल मार्ग सहित सोनप्रयाग व गौरीकुंड स्थित घोड़ा पड़ाव में लगभग आठ से दस हजार घोड़ा-खच्चर रहते हैं। एक घोड़ा-खच्चर एक दिन आठ से दस में किलो लीद करता है। अभी तक 1200 टन लीद एकत्रित कर दी गई है। सोनप्रयाग और गौरीकुंड में लीद एकत्रित की जा रही है। शुरुआत में इससे ईंट, गमला और कोयले बनाने की योजना है। भविष्य में अन्य उत्पादन भी किये जाएंगे।