चमोली-अगर आपको लगता है कि सिर्फ उत्तराखंड के जोशीमठ का ही जर्रा जर्रा थर्रा रहा है, तो आप एकदम गलत है। सिर्फ जोशीमठ ही नहीं उत्तराखंड के कई मुख्य पर्यटन स्थल खतरे की जद में हैं।
पहाड़ों का अंधाधुंध मशीनीकरण, बिना मास्टर प्लान और ड्रेनेज सीवरेज की कोई व्यवस्था न होने चलते उत्तराखंड के कई शहर डूबने की कगार पर खड़े हैं। यूं समझ लीजिए की उत्तराखंड के लोगों की जिंदगी अब ये दरारें तय कर रही हैं।एक तरफ जोशीमठ इस आधुनिकीकरण का बोझ नहीं उठा पा रहा, तो दूसरी तरफ कई शहर भी जोशीमठ की तरह की भयानक खतरे का संकेत दे रहे हैं। केदारनाथ का मुख्य पड़ाव कहे जाने वाले गुप्तकाशी पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
यहां साल दर साल नेताओं की बयानबाजी होती रही लेकिन न सीवरेज की व्यवस्था हुई, न ड्रेनेज की…आज हालात ये हैं कि शायद गुप्तकाशी में भी जमीन के अंदर कभी भी बड़ी हलचल हो सकती है। गुप्तकाशी के ठीक नीचे सेमी गांव है, बताया जाता है कि लंबे वक्त से सेमी गांव भी धंस रहा है और कभी भी मंदाकिनी नदी में समा सकता है।
उधर जोशीमठ में दरारों ने लोगों की जान सांसत में डाली हुई है कि दूसरी तरफ कर्णप्रयाग में इसी तरह की घटना सामने आई है। कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर में भू-धंसाव होने से 50 से अधिक मकानों में दरारें आ गई हैं। यहां रहने वाले लोगों ने अपने मकान खाली कर दिए हैं, सुरक्षित ठिकानों पर शरण ली है।
कोई अपने रिश्तेदार के घर पहुंचा है, कोई टेंट तिरपाल डालकर रह रहा है। कर्णप्रयाग के अप्पर बाजार वार्ड के 30 परिवारों पर भी ऐसा ही संकट आया हुआ है। सभी लोग प्रदेश सरकार से मदद मांग रहे हैं।
अब जरा रुद्रप्रयाग जिले के नरकोटा की तरफ चलिए, यहां कई महीनों से लोगों की एक शिकायत है। शिकायत ये कि उनके घरों में दरारें पड़ रही हैं।साथ हीं मुख्यालय के घोलतीर स्थित मरोड़ा गांव मे रेलवे प्रभावित लोगों ने घर तक छोड़ दिए हैं। जो कि खंडर हो चुके हैं।
इसकी वजह भी लोगों ने बताई है और कहा कि चार धाम रेल नेटवर्क के लिए जिन सुरंगों का काम चल रहा है, उनकी वजह से उनके घरों में दरारें पड़ रही हैं। कई बार लोगों ने शिकायत की लेकिन सरकारी अमले के काम में शायद जूं तक नहीं रेंगी।
ऐसे में भविष्य में क्या होगा? ये कोई नहीं जानता। नैनीताल के लिए तो कई बार वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है। अंग्रेजों ने इस शहर को मास्टर प्लान के तहत बसाया था। ड्रेनेज सीवेज सभी की व्यवस्था की गई थी लेकिन वक्त के साथ साथ इन व्यवस्थाओं को साइडलाइन कर दिया, हालात बेतरतीब हो रहे हैं और नैनीताल भीृ बड़े खतरे का संकेत दे रहा है।
यूं समझ लीजिए कि उत्तराखँड में पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक प्रकृति अशुभ संकेत दे रही है। कब कहां कौन सा शहर नेस्तनाबूत हो जाएगा, कोई नहीं जानता।
अभी भी वक्त है…प्रकृति से खिलवाड़ बंद हो, नेताजी अपनी भाषणबाजी से ज्यादा व्यवस्थाएं दुरुस्त करें, प्रशासन भी टालमटोल के बजाय अभी से इन व्यवस्थाओं को सुधारने में जुट जाए। तभी देवभूमि बचेगी। उत्तराखंड बचेगा।