रुद्रप्रयाग-नमामि गंगे योजना केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना है जिसके तहत सरकार अपने बड़े-बड़े दावों के साथ कहती है कि स्नान-घाटों की दिशा व दशा सुधरी है।हर साल-दो सालों में योजना के तहत बने घाटों का सौंदर्यीकरण व साफ-सफाई योजना के प्रबंधकों व आलाकमान अधिकारियों की देख-रेख में किया जाता है,लेकिन मौका-ए-हक़ीक़त की बात की जाय तो जनपद मुख्यालय के नजदीक कम से कम 4 से 5 घाटों पर नमामि गंगे परियोजना के तहत कार्य किये गये।लेकिन मौसम की मानसून भरी बरसाती बारिश के पहले ही घाटों की दुर्दशा चिंता का विषय बनी है।
एक ओर जहां जनपद मे केदारनाथ यात्रा सुचारू है वहीं आये-दिन श्रद्धालु मुख्यालय के निकट स्थित घाटों में जाने से भी डर रहे हैं।स्नान घाटों की स्थिति इतनी खराब है कि साफ-सफाई से लेकर,लकड़ी के बड़े लक्कड़ भी पिछली बरसात के समय से स्नान घाटों में फँसे पड़े हैं।लाखों रुपये की लगी स्ट्रीट लाइटें कब जली थी और अब कब जलेगीं इसका किसी को अंदाजा नही हैं।यहां तक कई स्नान घाटों पर तो सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाली बैटरियां भी चोर उखाड़ कर ले जा चुके हैं।घाटों पर लगे पत्थरों व बैठने के स्टील कुर्सी की बात करें तो बालू के बीच कहीं जगह दबे होने के साथ उन्हें भी तोड़-मरोड़ दिया गया है वहीं साफ तौर पर शहर का गन्दे नाले का पानी भी गंगा की अविरल धारा में चहुमुखी विकास की परिभाषा को दूषित करता दिख रहा है।
वहीं केंद्र व राज्य सरकारों का कहना है कि गंगा व उसकी सहायक नदियां स्वच्छ रहें इसके लिये नमामि गंगे परियोजना के तहत तमाम कार्य किए जा रहे हैं।अब ये अपने आप मे एक सवाल खड़ा करता है कि वाकई में परियोजना के तहत स्नान-घाटों की दशा बदली भी है या और दुर्दशा हुई है!!
आपको बता दें रुद्रप्रयाग मुख्यालय में गंगा की दो प्रमुख सहायक नदियां अलकनंदा व मन्दाकिनी के तट पर भी नमामि गंगे परियोजना के तहत करोड़ों की लागत से चार घाट बनाए गये हैं लेकिन मौसम की पहली बारिश से पहले ही निर्माण कार्यों की गुणवत्ता साफ तौर पर उखड़ती हुई दिख रही है।मुख्यालय के भीतर टूटे घाट जहां आमजन के लिये नाममात्र तक सीमित रह चुके हैं,वहीं आने वाले बरसाती मौसम में यह समस्या किसी खतरे से खाली नहीं हैं।
आपको बता दें जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग में नमामि गंगे योजना के तहत 2018 में बने घाटों में मुख्यालय के बेलणी पुल के नीचे, हनुमान मंदिर के नीचे, जज कार्यालय के समीप व संगम स्थल के समीप चार घाट बनाए गए लेकिन सबसे बड़े दुःख की बात यह रही कि घाट तो बनाये गये पैसा करोडों में आवंटित हुआ,लेकिन धरातल पर किया गया काम बस नाम मात्र के रूप में सीमित रह गया।बरसातें हर साल आती रहीं, साफ-सफाई की ओर ध्यान दिया नहीं गया और लाखों-करोडों रुपयों की दुर्गति व डकारने की हिम्मत का साहस कौन कर गया,किसी को कानोंकान खबर तक नही हुई।
हर साल बरसात के बाद जब नदी का जलस्तर उतरा तो घाटों में कई टन मलबा भरा रहता है व घाट बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जातें हैं।वहीं सबसे बुरी स्थिति बेलणी पुल के नीचे व हनुमान मंदिर नदी तट पर बने घाट की हैं। घाटों में लाखों की लागत से लगी स्ट्रीट लाइट भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं।जबकि परियोजना के तहत इन घाटों पर कुल 12 करोड़ की लागत से टायल्स, रैलिग, चैंजिग रूम, व्यू प्वाइंट, सोलर लाइटें, बड़ी स्ट्रीट लाइटें, विश्राम गृह सहित कई कार्य होने थे, लेकिन यह कार्य आज तक पूर्ण नहीं हो पाए है।वहीं पिछली बरसात में नदियों का जलस्तर बढ़ने के कारण घाटों में आई सिल्ट व रेत आज भी वहीं जमा है।साथ ही घाटों के डिजाइन को लेकर कई बार सवाल भी उठ चुके हैं।नगर की जनता का कहना है कि बरसात में नदियों का जलस्तर कई गुना बढ़ जाता है,ऐसे में घाटों को नदी के समीप बनाना गलत था और इस परियोजना के तहत करोडों रुपये का घोटाला सरकार द्वारा किया गया है जबकि घाट निर्मित हो रहे थे उस वक्त किसी भी स्थानीय जनता से सलाह-मशवरा नहीं किया गया,जिसका कारण आज घाटों की यह दुर्दशा है।