कोटद्वार-घर आंगन में फुदकने वाली गौरेया से आप सभी भलीभांति परिचित होंगे..आमतौर पर मनुष्य के घरों के आसपास रहने और घोसला बनाने वाली गौरेया को कंक्रीट के जंगल में पसंदीदा आवास नहीं मिल पा रहा है। जिसके कारण अब गौरेया को बचाना हम सभी के लिये बड़ी चुुनौती बन गया है।गौरेया की इसी समस्या से चिंतित भाबर के नंदपुर निवासी शिक्षक दिनेश कुकरेती विगत 26 सालों से न केवल उसके संरक्षण में जुटे हैं, बल्कि अपने वेतन के पैसों से उसके लिए प्लाई का घोसला (नेस्ट) बनाकर निशुल्क लोगों को अपने घरों में लगाने के लिए भी बांट रहे हैं। अब उन्हें शिक्षक के साथ ही पक्षी प्रेमी के रुप में भी जाना जाने लगा है।दिनेश बताते हैं कि घर के आंगन में मां का चावल के दाने डालना और झट से गौरैया का उड़ कर आना। रसोई घर के रोशन दान को घेरे रखना। चावल और गेहूं की खड़ी फसलों पर अपनी नजरें बनाए रखना। गौरैया हमारे आसपास रहकर ऐसे कई काम करती थी, जिससे हम परेशान भी हो जाया करते थे। लेकिन इन सब के बाद भी गौरैया की चहचाहट मन को सुकून देती थी। आज परिस्थितियां बदली और पक्षियों की यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है।
गौरैया को बचाने की मुहिम में वह गत 26 वर्षो से जुटे हैं। गौरैया के नेस्ट बनाने के लिए स्वयं के पैसे से प्लाई, कील और तार खरीदकर उसे तैयार करना और फिर लोगों को निशुल्क बांटने से उन्हें गजब का संतोष मिलता है। दिनेश वर्तमान में जीआईसी द्वारी पैनो में गणित के सहायक अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। स्कूल की छुट्टी के बाद वह अपना समय इसी कार्य में लगाते हैं।बता दें शिक्षक दिनेश चंद्र कुकरेती ने अपने घर को ही गौरैया संरक्षण केंद्र में तब्दील कर दिया है। गत 26 वर्षो से सेव नेस्ट, सेव बर्ड्स मुहिम चलाकर गौरैया का संरक्षण विभिन्न प्रयोगों और अनुभवों के आधार पर कर रहे हैं। उनके घर में 80 से अधिक जालीदार नेस्ट बॉक्स लगे हैं। जिसमें 100 से अधिक जोड़े रहते हैं।साथ ही नेस्ट बॉक्स वह स्वयं बनाते हैँ, जिसमें उनका परिवार सहयोग करता है। उनका कहना है कि वर्ष 2008 में जहां क्षेत्र में 3000 हजार गौरेया थी, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 18,000 हो गई है। उन्होंने हाल ही मेरा परिवार, पक्षी परिवार अभियान शुरू किया है, जिसमें 500 से अधिक लोग जुड़ चुके हैं।