उत्तरकाशी-मां गंगा के शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव में सेल्कू पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान स्थानीय लोगों ने बग्वाल की तर्ज पर चीड़ व देवदार के छिल्लों से बने भैलो खेल कर रातभर रासो और तांदी नृत्य किया। साथ ही देवडोलियों का आशीर्वाद लेकर परिवार और क्षेत्र की खुशहाली की कामना की।दो दिन तक सीमांत गांव मुखबा में सेल्कू पर्व की धूम रही। दो दिन तक मुखबा में दीवाली जैसा माहौल रहा। मुखबा गांव में सेल्कू मेले की तैयारी काफी दिनों से चल रही थी। परंपरा के अनुसार सबसे पहले अपनी बेटियों और रिश्तेदारों को इस उत्सव का निमंत्रण दिया जाता है। इसके बाद सबके घरों में मक्की के आटे व गुड़ से द्यूड़े तैयार किए जाते हैं। जो कि घी और आलू के झोल के साथ परोसे जाते हैं। इस दौरान कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। रात में सभी लोग मंदिर परिसर में एकत्र होकर चीड़ व देवदार की लकड़ी के छिल्लों से बने भैलो बनाते हैं और पूजा कर उन्हें जलाया जाता है। इस दौरान वाद्य यंत्र की धुन के साथ जमकर रासों, नृत्य किया।
उत्सव में ब्रह्मकमल, जययाण, केदार पत्ती व गंगा तुलसी से सोमेश्वर देवता की पूजा कर पुष्प प्रसाद स्वरूप आशीर्वाद के रूप में लोगों ने ग्रहण किया। मुखबा गांव में सेलकू मेले में परंपरा, संस्कृति और भावनाओं का एक अनोखा मिलन देखने को मिला। लोक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है इस दिन इलाके के लोगों ने तिब्बत के आक्रमणकारियों को हराया था और उसी के जश्न में इस त्यौहार मनाया जाता है।