रुद्रप्रयाग। बीएड की फर्जी डिग्री पाकर नौकरी कर रहे दो शिक्षकों को 5-5 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। दोनों शिक्षकों के खिलाफ शिक्षा विभाग द्वारा विभागीय एवं एसआईटी जांच भी हुई। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अशोक कुमार सैनी की अदालत ने दोनों फर्जी शिक्षकों को सजा का फैसला सुनाया। मामले में राज्य सरकार की ओर से प्रभावी पैरवी अभियोजन अधिकारी प्रमोद चन्द्र आर्य एवं विनीत उपाध्याय ने की।
अभियोजन अधिकारी के अनुसार जनपद रुद्रप्रयाग में तैनात फर्जी शिक्षक भवानी लाल पुत्र शेरी लाल एवं गुलाब सिंह पुत्र शिवराज सिंह द्वारा अपनी बीएड की फर्जी डिग्री के आधार पर शिक्षा विभाग उत्तराखंड में शिक्षक की नौकरी प्राप्त की गई। शिक्षा विभाग की एसआईटी एवं विभागीय जांच में दोनों शिक्षकों को अलग-अलग मामलों में अलग-अलग वर्षों में प्राप्त फर्जी बीएड की डिग्री से नौकरी प्राप्त करने पर उनकी बीएड की डिग्री का सत्यापन कराया गया। सत्यापन के बाद चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से जांच आख्या प्राप्त हुई, जिसमें उक्त दोनों अध्यापकों को विश्वविद्यालय से कोई भी बीएड की डिग्री जारी नहीं की गई। शासन स्तर से एसआईटी जांच भी कराई गई, जिसके आधार पर शिक्षा विभाग रुद्रप्रयाग ने दोनों शिक्षकों के विरूद्ध मुकदमा पंजीकृत कराया। साथ ही शिक्षा विभाग ने फर्जी शिक्षकों को तत्काल निलंबित करते हुए बर्खास्त किया, जबकि मामला सीजेएम न्यायालय रुद्रप्रयाग के समक्ष विचारण के लिए पहुंचा। शनिवार को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अशोक कुमार सैनी की न्यायालय ने फर्जी शिक्षक भवानी लाल पुत्र शेरी लाल एवं गुलाब सिह पुत्र शिवराज सिंह को फर्जी बीएड की डिग्री के आधार पर छल व कपट से नौकरी प्राप्त करने के संबंध में दोषी करार पाते हुए दोनों अभियुक्तों को अलग-अलग मामले में धारा 420 भारतीय दण्ड संहिता, 1860 में 5-5 वर्ष का कठोर कारावास एवं 10 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया गया। जुर्माना अदा ना करने पर उक्त शिक्षकों को तीन माह का अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। न्यायालय द्वारा दोनों दोषसिद्ध शिक्षकों को न्यायिक अभिरक्षा में लेकर दंडादेश भुगतने के लिए जिला कारागार पुरसाड़ी चमोली भेजा गया। इधर, इस निर्णय एवं आदेश की प्रतिलिपि सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही के लिए सचिव शिक्षा, सचिव गृह उत्तराखण्ड देहरादून को भी भेजी गई, ताकि शिक्षा विभाग के गैर जिम्मेदार शिक्षा अधिकारियों के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही अमल में लाई जा सके। शिक्षा विभाग द्वारा बिना सत्यापन के फर्जी शिक्षकों को सेवा में नियुक्ति के अलावा स्थायीकरण भी किया गया। साथ ही प्रोन्नति भी बिना जांच पड़ताल के प्रदान की गई, जिससे शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही उजागर हुई है।