जोशीमठ(चमोली)-सीमा से लगे चमोली जनपद का जोशीमठ क्षेत्र खतरे की जद में है।पहाड़ी पर बसा जोशीमठ शहर धीरे धीरे करके नीचे जमीन में धंसता जा रहा है।यहां बने ज्यादातर मकानों में दरारें पड़ने लगी हैं। कई घरों के आंगन जमीन के अंदर धंसने शुरू हो गए हैं। शहर की सड़कें जगह जगह पर धंस गई हैं। लोग टूटे मकानों में जान खतरे में डालकर रहने को मजबूर हैं।
उत्तराखंड के चमोली जिले के इसी इलाके में बीते साल फरवरी में आई बाढ़ और ग्लेशियर टूटने की घटना के बाद घरों में दरार आने की संख्या में इजाफा हुआ है। ग्लेशियर टूटने से उस वक्त यहां 180 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।इसी ग्लेशियर के टूटने के बाद जोशीमठ के नैनी गांव से लेकर सुनील गांव तक कई गांवों में यह दरार अचानक से दिखने लगी थी।स्थानीय लोग मानते हैं कि उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे अत्यधिक निर्माण और बन रहे बांधों की वजह से भी गांव में यह दरारें दिख रही हैं।
रुड़की आईआईटी और देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक और इंजीनियर भी जोशीमठ के गांवों में जाकर कई बार रिसर्च कर चुके हैं. लगातार वैज्ञानिक इस पूरी बेल्ट पर अध्ययन कर रहे हैं. भूकंप के लिहाज से भी जोशीमठ जोन 5 में आता है. साल 2011 के आंकड़े के मुताबिक 4000 घरों में लगभग 17,000 लोग यहां निवास करते थे, जबकि इस क्षेत्र में मकानों के साथ-साथ बांध, ट्रैफिक और दूसरी परियोजनाओं का विस्तार हुआ है. इतना ही नहीं उत्तराखंड के पहाड़ अभी नए हैं, लिहाजा अत्यधिक बारिश होने की वजह से भी लगातार मिट्टी और भूस्खलन हो रहा है. जिसके कारण ये क्षेत्र संवेदनशील बना हुआ है. साल 2013 में आई आपदा के दौरान भी जोशीमठ में 17 और 19 अक्टूबर के बीच 190 मिलीमीटर बरसात रिकॉर्ड की गई थी, जो सामान्य से बहुत ज्यादा थी. उसके बाद उत्तराखंड में लगातार बारिश का सिलसिला हर मानसून में जारी रहा. जिसके कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं।
वहीं जोशीमठ चमोली जिले का ऐतिहासिक शहर है. जोशीमठ में पिछले एक साल से भू धंसाव हो रहा है। जिसके चलते जोशीमठ नगर पर खतरा मंडरा रहा है. जोशीमठ में भू धंसाव के कारण जगह जगह मकानों में बड़ी बड़ी दरारें पड़ने लगी हैं. जिसके कारण लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. कई घर रहने लायक ही नहीं बचे हैं. कई नए घरों को लोगों ने ताला लगाने के बाद छोड़ दिया है. यहां के रहवासी जोशीमठ छोड़कर सुरक्षित स्थानों के लिए निकल गये हैं. वहीं, अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो दरार से क्षतिग्रस्त घरों के अंदर खौफ के साए में जीने को मजबूर हैं।