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Home उत्तराखंड

पहाड़ की शान को ज़िंदा रखे हुए हैं आज भी!! “रिंगालमैन” राजेंद्र बड़वाल

by पहाड़वासी
December 23, 2022
in उत्तराखंड, सामाजिक
Reading Time: 5 mins read
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चमोली-लॉकडाउन के दौरान देश के अलग-अलग राज्यों से प्रवासी लोग अपने गांव को लौटे हैं । उत्तराखंड के ऐसे गांव जो पहले वीरान थे अब आबाद हुए है। मगर ऐसे प्रवासियों के सामने रोजगार का सबसे बड़ा संकट है। इस संकट को रोजगार में बदल कर चमोली जिले के किरुली गांव के राजेंद्र ने नई मिसाल पेश की है।
यूं तो रिंगाल उत्तराखंड की वादियों पैदा होता है मगर रिंगाल में हस्तशिल्प से जो कला उकेरी जाती है वह यहां की परंपरा और धरोहर को परिलक्षित करती हैं।

चमोली के रहने वाले राजेन्द्र ने रिंगाल के उत्पात से युवाओं को रोजगार देने का बीड़ा उठाया है। आज वे पर्वतीय क्षेत्र में रहकर रिंगाल को एक नई बुलंदी दे रहे हैं। युवाओं के उनके हांथों को रोजगार भी मिलता है ।
राजेंद्र का कहना है की रिंगाल उत्तराखंड की कला संस्कृति, धरोहर, परंपरा से जुड़ा एक ऐसा पौधा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को छत देने के साथ रोजगार भी देता आया है । पीढ़ी दर पीढ़ी मानव समाज के साथ चला आ रहा है। आज उस रिंगाल को एक नई ऊंचाई देने का वक्त है। ऐसे में वे युवाओं को प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि युवा अपने गांव में ,अपने घरों में रहकर अपनी सभ्यता को और समृद्धिशाली बनाने के साथ अपनी आर्थिक स्थितियों को भी मजबूत कर सकें।

उत्तराखंड के जंगलों में पाए जाने वाला ऐसा पौधा हैं जो बांस की प्रजाति का होता है बांस का बौना प्रजाति भी कहा जाता है । जहां बांस की लंबाई 25 से 30 मीटर होती है । वही रिंगाल 5 से 8 मीटर लंबा होता है । रिंगाल सिर्फ एक बांस का बोना पौधा नहीं है बल्कि यह रोजगार का एक नया आयाम हैं ।रिंगाल से तरह-तरह की वस्तुएं बनाई जाती हैं आज जिस तरह से दुनिया भर के लोग ऑर्गेनिक उत्पाद को पसंद कर रहे है। वही प्राकृतिक वनस्पतियों से बनी वस्तुओं की भी लगातार मांग बढ़ती जा रही है । रिंगाल को उत्तराखंड के लोकजीवन का एक अभिन्न अंग भी कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । क्योंकि रिंगाल की बनी चाहे सूप है रोटी रखने की छापरी है फूलदेई की टोकरी है कि झाड़ू है खाना रखने की टोकरी है वहीं घर की छत पर रिंगाल का उपयोग तो किया ही जाता है । उत्तराखंड के ग्रामीण जीवन में उसी तरह से हैं जैसे इंसान की जिंदगी में रोटी ,कपड़ा, मकान है इसका भी ताना-बाना पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ इसी तरह से जुड़ी है ।खासतौर से रिंगाल की कुल 5 प्रजातियां हैं । लेकिन इसमें देव रिंगाल का सबसे महत्वपूर्ण होता है । रिंगाल का दैनिक जीवन में बहुत उपयोग है। आज जिस तरह से पलायन बेरोजगारी और आधुनिकीकरण की बात हो रही है ऐसे में रिंगाल सिर्फ एक पौधा नहीं है बल्कि रिंगाल एक रोजगार साधन है।

चमोली के राजेंद्र आधुनिक उपकरण के तौर पर इसका इस्तेमाल कर रहे हैं इससे गुलदस्ते ,हैंगर ,स्टैंड, स्टैंड टेबल डस्टबिन प्रमुख वस्तुएं बन रही है।मुख्य रूप से नौकरी कि तलाश में भटकने वाले नौजवानों के लिये मिसाल हैं राजेंद्र!!जहाँ आत्मनिर्भर भारत में रोजगार के नए आयाम खोजने के लिए शहरों में जाने की जरूरत नहीं है ।ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहकर कुटीर उद्योगों से जुडीं ऐसी कलाऐं है जो सिर्फ क्षेत्र को पहचान नहीं देती बल्कि रोजगार भी देती है । जीवन की परंपराओं, सभ्यताओं और लोक संस्कृति हैं हमारे साथ जिंदा भी रहती है । ऐसे में हम चमोली के राजेंद्र का भी धन्यवाद देते हैं ।।हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं वे इसी तरह से उत्तरोत्तर आगे बढ़ते रहें। रिंगाल की जो शान है जिसकी पहचान है उसको यूं ही तो बढ़ाते रहें।

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