रुद्रप्रयाग-केदारनाथ आपदा के बाद केदारघाटी का सेमी-भैंसारी भू-धंसाव से बदहाल हो चुका है। धंस रही जमीन से यहां के हालातों को रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे बखूबी बयां कर रहा है। नौ वर्ष बीतने के बाद भी न तो ग्रामीणों को विस्थापित किया गया और न ही यहां सुरक्षा के इंतजाम किए गए। जिले में तुंगनाथ घाटी के उषाड़ा, ताला गांव की हालत भी दयनीय है।
केदारनाथ आपदा के बाद से सेमी-भैंसारी गांव भूू-धंसाव से चारों तरफ दरारों से पटा है। गांव के नीचे बह रही मंदाकिनी नदी का तेज बहाव से भू-कटाव हो रहा है। उधर, तुंगनाथ घाटी के ताला, उषाड़ा, दैड़ा, मक्कू आदि गांवों के कई तोक भू-धंसाव से प्रभावित हैं। 2020 में प्रशासन द्वारा क्षेत्र का भू-गर्भीय सर्वेक्षण कराया गया जिसकी रिपोर्ट के आधार पर उषाड़ा के 72 परिवारों को विस्थापन के लिए चिन्हित किया गया लेकिन अभी तक एक भी परिवार का विस्थापन नहीं हो पाया।
दूसरी तरफ कांडई क्षेत्र में भी भूधंसाव हो रहा है। जखोली ब्लॉक के जवाड़ी गांव भी भू-धंसाव की चपेट में है। हालांकि क्षेत्र का जापानी तकनीक से मरम्मत कार्य शुरू हो गया है। मद्महेश्वर घाटी में भी 90 के दशक में कई गांव आपदा से प्रभावित हुए हैं।
साथ हीं पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली का कहना है कि विकास योजनाओं के निर्माण के नाम पर अत्यधिक कटान से मिट्टी की कई परतें नष्ट हो रही है जिससे बरसाती पानी जमीन के अंदर घुस कर भू-धंसाव का कारण बन रहा है। वहीं राजवीर सिंह चौहान, ईई एनएच निर्माण खंड लोनिवि, रुद्रप्रयाग ने बताया कि सेमी-भैंसारी भू-धंसाव क्षेत्र में स्थायी सुरक्षा कार्य आगामी 15 फरवरी से शुरू किए जाएंगे। इन दिनों तकनीकी निविदा की औपचारिकताएं पूरी की जा रही है।